साधू का दिगम्बरत्व रूप साधना का एक उत्कृष्ट रूप है , विकार और दुर्बलता रहित है !
चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री १०८ शांति सागर जी महाराज " ने एक बार जब हैदराबाद ( जहाँ मुसलमान शासन था ) की तरफ विहार किया तब वहाँ के निजाम ने आचार्य श्री की चर्या सुनकर अपनी बेगमों के साथ उनकी आरती उतारी ! और कुछ लोगों के आपत्ति करने पर निजाम ने जो उत्तर दिया वो इतिहास बन गया ! उन्होंने कहा की - " हमारे देश में नंगों पर प्रतिबन्ध है , फरिश्तों पर नहीं और ये एक फ़रिश्ते हैं " !
- प. पू. मुनि श्री १०८ प्रमाण सागर जी महाराज